तत्रादृष्टस्वरूपाय श्रुतपूर्वाय वै प्रभु: ।
स्तुतिमब्रूत दैवीभिर्गीर्भिस्त्ववहितेन्द्रिय: ॥ २५ ॥
अनुवाद
श्वेतद्वीप में, ब्रह्माजी ने भगवान की स्तुति की। यद्यपि उन्होंने परमेश्वर को पहले कभी नहीं देखा था, तथापि उन्होंने वैदिक साहित्य से भगवान के विषय में सुना था। इसलिए उन्होंने स्थिरचित्त होकर वैदिक साहित्य में वर्णित स्तुति उसी प्रकार चढ़ाई जैसी वैदिक साहित्य में लिखी या मान्य है।