श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 5: देवताओं द्वारा भगवान् से सुरक्षा याचना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  8.5.25 
 
 
तत्राद‍ृष्टस्वरूपाय श्रुतपूर्वाय वै प्रभु: ।
स्तुतिमब्रूत दैवीभिर्गीर्भिस्त्ववहितेन्द्रिय: ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  श्वेतद्वीप में, ब्रह्माजी ने भगवान की स्तुति की। यद्यपि उन्होंने परमेश्वर को पहले कभी नहीं देखा था, तथापि उन्होंने वैदिक साहित्य से भगवान के विषय में सुना था। इसलिए उन्होंने स्थिरचित्त होकर वैदिक साहित्य में वर्णित स्तुति उसी प्रकार चढ़ाई जैसी वैदिक साहित्य में लिखी या मान्य है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.