अयं च तस्य स्थितिपालनक्षण:
सत्त्वं जुषाणस्य भवाय देहिनाम् ।
तस्माद् व्रजाम: शरणं जगद्गुरुं
स्वानां स नो धास्यति शं सुरप्रिय: ॥ २३ ॥
अनुवाद
यह जीवों के सद्गुण को जागृत करने का उचित समय है। सद्गुण भगवान के शासन को स्थापित करने के साधन के रूप में काम करते हैं, जो सृष्टि के अस्तित्व को बनाए रखेंगे। इसलिए, भगवान की शरण लेने के लिए यह उचित अवसर है। क्योंकि वे देवताओं के प्रति स्वाभाविक रूप से बहुत दयालु और प्रिय हैं, इसलिए वे निश्चित रूप से हमें सौभाग्यशाली बनाएंगे।