न यस्य वध्यो न च रक्षणीयो
नोपेक्षणीयादरणीयपक्ष: ।
तथापि सर्गस्थितिसंयमार्थं
धत्ते रज:सत्त्वतमांसि काले ॥ २२ ॥
अनुवाद
भगवान् के लिए कोई भी वध्य या रक्षणीय या उपेक्षणीय या पूजनीय नहीं है। फिर भी, समयानुसार सृष्टि, पालन और संहार के लिए वे अच्छाई, जुनून या अज्ञानता के गुणों में विभिन्न रूपों में अवतार लेना स्वीकार करते हैं।