श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 5: देवताओं द्वारा भगवान् से सुरक्षा याचना  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  8.5.13 
 
 
त्वया सङ्कथ्यमानेन महिम्ना सात्वतां पते: ।
नातितृप्यति मे चित्तं सुचिरं तापतापितम् ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  मेरा हृदय, जो भौतिक जीवन की तीन दयनीय अवस्थाओं से विचलित है, वह तब भी तृप्त नहीं होता जब आप भक्तों के स्वामी भगवान के यशस्वी कार्यकलापों का वर्णन करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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