श्रीराजोवाच
यथा भगवता ब्रह्मन्मथित: क्षीरसागर: ।
यदर्थं वा यतश्चाद्रिं दधाराम्बुचरात्मना ॥ ११ ॥
यथामृतं सुरै: प्राप्तं किं चान्यदभवत् तत: ।
एतद् भगवत: कर्म वदस्व परमाद्भुतम् ॥ १२ ॥
अनुवाद
राजा परीक्षित ने पूछा, "हे परम ब्राह्मण, शुकदेव गोस्वामी! भगवान विष्णु ने क्षीरसागर का मंथन क्यों और कैसे किया? वे कच्छप रूप में पानी के भीतर क्यों रहे और मन्दर पर्वत को क्यों संभाला? देवताओं को अमृत कैसे प्राप्त हुआ? सागर मंथन से अन्य कौन-कौन सी वस्तुएँ उत्पन्न हुईं? कृपा करके भगवान के इन सभी अद्भुत कार्यों का वर्णन करें।"