श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 4: गजेन्द्र का वैकुण्ठ गमन  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  8.4.26 
 
 
श्रीशुक उवाच
इत्यादिश्य हृषीकेश: प्राध्माय जलजोत्तमम् ।
हर्षयन्विबुधानीकमारुरोह खगाधिपम् ॥ २६ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा: यह उपदेश देने के बाद, भगवान हृषीकेश ने अपने पाञ्चजन्य शंख को बजाया और इस तरह ब्रह्मा इत्यादि सभी देवताओं को प्रसन्न किया। तब वे अपने वाहन गरुड़ की पीठ पर आरूढ़ हो गए।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध आठ के अंतर्गत चौथा अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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