श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 4: गजेन्द्र का वैकुण्ठ गमन  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  8.4.16 
 
 
इदमाह हरि: प्रीतो गजेन्द्रं कुरुसत्तम ।
श‍ृण्वतां सर्वभूतानां सर्वभूतमयो विभु: ॥ १६ ॥
 
अनुवाद
 
  हे कुरु श्रेष्ठ! इस प्रकार सभी के परमात्मा अर्थात् भगवान प्रसन्न हो गए और उन्होंने सबों के सामने गजेन्द्र को संबोधित करते हुए निम्नलिखित आशीष दिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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