श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 4: गजेन्द्र का वैकुण्ठ गमन  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  8.4.15 
 
 
यथानुकीर्तयन्त्येतच्छ्रेयस्कामा द्विजातय: ।
शुचय: प्रातरुत्थाय दु:स्वप्नाद्युपशान्तये ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  इसलिए, जो लोग अपना कल्याण चाहते हैं - विशेष रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य और इनमें से भी मुख्य रूप से ब्राह्मण वैष्णव - उन्हें सुबह बिस्तर से उठकर बुरे सपनों के दुखों को दूर करने के लिए इस कथा को बिना विचलित हुए उसी तरह पढ़ना चाहिए ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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