तस्मा इमं शापमदादसाधु-
रयं दुरात्माकृतबुद्धिरद्य ।
विप्रावमन्ता विशतां तमिस्रं
यथा गज: स्तब्धमति: स एव ॥ १० ॥
अनुवाद
तब अगस्त्य मुनि ने राजा को यह शाप दिया - "इंद्रद्युम्न तनिक भी भद्र नहीं है। नीच और अशिक्षित होने के कारण इसने ब्राह्मण का अपमान किया है। अतएव यह अंधकार प्रदेश में प्रवेश करे और आलसी और मूक हाथी का शरीर प्राप्त करे।"