श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 4: गजेन्द्र का वैकुण्ठ गमन  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  8.4.10 
 
 
तस्मा इमं शापमदादसाधु-
रयं दुरात्माकृतबुद्धिरद्य ।
विप्रावमन्ता विशतां तमिस्रं
यथा गज: स्तब्धमति: स एव ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  तब अगस्त्य मुनि ने राजा को यह शाप दिया - "इंद्रद्युम्न तनिक भी भद्र नहीं है। नीच और अशिक्षित होने के कारण इसने ब्राह्मण का अपमान किया है। अतएव यह अंधकार प्रदेश में प्रवेश करे और आलसी और मूक हाथी का शरीर प्राप्त करे।"
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.