श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 3: गजेन्द्र की समर्पण-स्तुति  »  श्लोक 8-9
 
 
श्लोक  8.3.8-9 
 
 
न विद्यते यस्य च जन्म कर्म वा
न नामरूपे गुणदोष एव वा ।
तथापि लोकाप्ययसम्भवाय य:
स्वमायया तान्यनुकालमृच्छति ॥ ८ ॥
तस्मै नम: परेशाय ब्रह्मणेऽनन्तशक्तये ।
अरूपायोरुरूपाय नम आश्चर्यकर्मणे ॥ ९ ॥
 
अनुवाद
 
  ईश्वर का कोई भौतिक जन्म, कर्म, नाम, रूप, गुण या दोष नहीं है। जिस उद्देश्य से यह भौतिक जगत बना और बिगड़ा, उसे पूरा करने के लिए वे अपनी मूल आंतरिक शक्ति द्वारा भगवान राम या श्री कृष्ण जैसे मानव रूप में आते हैं। उनकी शक्ति अपार है और वे विभिन्न रूपों में, सभी भौतिक दोषों से सर्वथा रहित होकर अद्भुत कार्य करते हैं। इसलिए वे ही परब्रह्म हैं। मैं उन्हें प्रणाम करता हूं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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