श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 3: गजेन्द्र की समर्पण-स्तुति  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  8.3.4 
 
 
य: स्वात्मनीदं निजमाययार्पितं
क्‍वचिद् विभातं क्‍व च तत् तिरोहितम् ।
अविद्धद‍ृक् साक्ष्युभयं तदीक्षते
स आत्ममूलोऽवतु मां परात्पर: ॥ ४ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान अपनी शक्ति के प्रसार से कभी इस दृश्यमान जगत को प्रकट करते हैं, तो कभी इसे अपने में लीन कर लेते हैं। वे सभी परिस्थितियों में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों ही कारण और परिणाम हैं, प्रेक्षक और साक्षी दोनों हैं। इस तरह वे हर चीज से परे हैं। ऐसे भगवान ही मेरी रक्षा करें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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