श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 3: गजेन्द्र की समर्पण-स्तुति  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  8.3.33 
 
 
तं वीक्ष्य पीडितमज: सहसावतीर्य
सग्राहमाशु सरस: कृपयोज्जहार ।
ग्राहाद् विपाटितमुखादरिणा गजेन्द्रं
संपश्यतां हरिरमूमुचदुच्छ्रियाणाम् ॥ ३३ ॥
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात्, गजेन्द्र को इस प्रकार से संकट में देखकर अजन्मे भगवान् हरि अपनी अहैतुकी कृपा से तुरंत गरुड़ की पीठ से उतर आए और उन्होंने गजेन्द्र को मगरमच्छ समेत पानी से बाहर खींच लिया। तब सभी देवता जो इस दृश्य को देख रहे थे, भगवान ने अपने चक्र से मगरमच्छ के मुँह को उसके शरीर से अलग कर दिया। इस प्रकार उन्होंने गजेन्द्र, हाथियों के राजा को बचा लिया।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध आठ के अंतर्गत तीसरा अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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