श्रीशुक उवाच
एवं गजेन्द्रमुपवर्णितनिर्विशेषं
ब्रह्मादयो विविधलिङ्गभिदाभिमाना: ।
नैते यदोपससृपुर्निखिलात्मकत्वात्
तत्राखिलामरमयो हरिराविरासीत् ॥ ३० ॥
अनुवाद
श्री शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा: जब गजेन्द्र किसी विशेष व्यक्ति का नाम लिए बिना सर्वोच्च शक्ति का बखान कर रहा था, तब उसने ब्रह्मा, शिव, इंद्र, चंद्र आदि देवताओं का आह्वान नहीं किया था। इसलिए, उनमें से कोई भी उसके पास नहीं आया। किंतु चूंकि भगवान हरि परमात्मा, पुरुषोत्तम हैं, अतः वे गजेन्द्र के सामने स्वयं प्रकट हुए।