श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 3: गजेन्द्र की समर्पण-स्तुति  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  8.3.28 
 
 
नमो नमस्तुभ्यमसह्यवेग-
शक्तित्रयायाखिलधीगुणाय ।
प्रपन्नपालाय दुरन्तशक्तये
कदिन्द्रियाणामनवाप्यवर्त्मने ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभु! आप तीन तरह की शक्तियों के प्रबल वेग को नियंत्रित करने वाले हैं। आप सभी इंद्रियों के सुख के भंडार हैं और आपके शरण में आये हुये प्राणियों के रक्षक हैं। आप असीमित शक्ति के स्वामी हैं, लेकिन जो लोग अपनी इन्द्रियों को वश में नहीं कर पाते, वे आप तक नहीं पहुँच सकते। मैं आपको बार-बार सादर प्रणाम करता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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