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स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन
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अध्याय 3: गजेन्द्र की समर्पण-स्तुति
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श्लोक 27
श्लोक
8.3.27
योगरन्धितकर्माणो हृदि योगविभाविते ।
योगिनो यं प्रपश्यन्ति योगेशं तं नतोऽस्म्यहम् ॥ २७ ॥
अनुवाद
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मैं उन ब्रह्म, परमात्मा, समस्त योग के स्वामी को नमन करता हूँ, जिन्हें सिद्ध योगी अपने हृदयों में तब देखते हैं, जब उनके हृदय भक्तियोग के अभ्यास से सकाम कर्मों के फल से पूरी तरह से शुद्ध और मुक्त हो जाते हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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