श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 3: गजेन्द्र की समर्पण-स्तुति  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  8.3.19 
 
 
यं धर्मकामार्थविमुक्तिकामा
भजन्त इष्टां गतिमाप्नुवन्ति ।
किं चाशिषो रात्यपि देहमव्ययं
करोतु मेऽदभ्रदयो विमोक्षणम् ॥ १९ ॥
 
अनुवाद
 
  ईश्वर की पूजा करने वाले जातक जो धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष इन चारों में इच्छा रखते हैं, वे उससे अपनी इच्छानुसार इनको प्राप्त कर लेते हैं। तो फिर अन्य वरदान के विषय में क्या कहा जा सकता है? कभी-कभी ईश्वर ऐसे महत्वाकांक्षी पूजकों को दिव्य शरीर प्रदान करते हैं। परम दयालु ईश्वर ही मुझे वर्तमान संकट और भौतिकतावादी जीवन शैली से मुक्ति का वरदान प्रदान करें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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