गुणारणिच्छन्नचिदुष्मपाय
तत्क्षोभविस्फूर्जितमानसाय ।
नैष्कर्म्यभावेन विवर्जितागम-
स्वयंप्रकाशाय नमस्करोमि ॥ १६ ॥
अनुवाद
हे भगवन! जिस तरह अरणिक लकड़ी में आग छिपी रहती है ठीक वैसे ही आप और आपका ज्ञान प्रकृति के भौतिक गुणों से ढका रहता है। लेकिन आपका दिमाग इन गुणों के कामों पर ध्यान नहीं देता। जो लोग आध्यात्मिकता में आगे हैं वे वैदिक साहित्य में दिए गए नियमों के अधीन नहीं होते। ऐसे लोग दिव्य होते हैं इसलिए आप खुद उनके पवित्र दिमाग में दिखते हैं। इसलिए मैं आपको प्रणाम करता हूं।