श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 3: गजेन्द्र की समर्पण-स्तुति  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  8.3.15 
 
 
नमो नमस्तेऽखिलकारणाय
निष्कारणायाद्भ‍ुतकारणाय ।
सर्वागमाम्नायमहार्णवाय
नमोऽपवर्गाय परायणाय ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  हे मेरे प्रभु, आप समस्त कारणों के कारण हैं, पर आपके स्वयं का कोई कारण नहीं है। इसलिए आप ही हर वस्तु के अद्भुत कारण हैं। आप पंचरात्र और वेदान्त-सूत्र जैसे शास्त्रों में निहित वैदिक ज्ञान के आश्रय हैं, जो आपके वास्तविक स्वरूप हैं और परंपरा प्रणाली के स्रोत हैं। आपकी शरण में ही मुक्ति का वास है। इसीलिए आप ही सभी अध्यात्मवादियों के एकमात्र आश्रय हैं। मैं आपको सादर प्रणाम करता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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