नम: शान्ताय घोराय मूढाय गुणधर्मिणे ।
निर्विशेषाय साम्याय नमो ज्ञानघनाय च ॥ १२ ॥
अनुवाद
मैं सर्वव्यापी भगवान वासुदेव को, भगवान के भयानक स्वरूप नृसिंहदेव के प्रति, भगवान के पशुरूप वराहदेव को, निर्गुणता का उपदेश देने वाले भगवान दत्तात्रेय को, भगवान बुद्ध को और अन्य सभी अवतारों के प्रति श्रद्धा प्रकट करता हूँ। मैं उन भगवान को सादर प्रणाम करता हूँ जो निर्गुण हैं किन्तु संसार में सत्व, रज और तम गुणों को स्वीकार करते हैं। मैं निर्गुण ब्रह्मतेज को भी सादर प्रणाम करता हूँ।