श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 24: भगवान् का मत्स्यावतार  »  श्लोक 61
 
 
श्लोक  8.24.61 
 
 
प्रलयपयसि धातु: सुप्तशक्तेर्मुखेभ्य:
श्रुतिगणमपनीतं प्रत्युपादत्त हत्वा ।
दितिजमकथयद् यो ब्रह्म सत्यव्रतानां
तमहमखिलहेतुं जिह्ममीनं नतोऽस्मि ॥ ६१ ॥
 
अनुवाद
 
  मैं उस परमेश्वर को श्रद्धापूर्वक प्रणाम करता हूँ जिन्होंने एक बड़ी मछली का रूप धरने का ढोंग किया और जब भगवान ब्रह्मा अपनी नींद से जागे तब उन्हें वैदिक साहित्य वापस लौटाया और राजा सत्यव्रत और महान संतों को वैदिक साहित्य का सार समझाया।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध आठ के अंतर्गत चौबीसवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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