श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 24: भगवान् का मत्स्यावतार  »  श्लोक 56
 
 
श्लोक  8.24.56 
 
 
अश्रौषीद‍ृषिभि: साकमात्मतत्त्वमसंशयम् ।
नाव्यासीनो भगवता प्रोक्तं ब्रह्म सनातनम् ॥ ५६ ॥
 
अनुवाद
 
  नाव में बैठे-बैठे राजा सत्यव्रत ने महर्षियों के साथ मिलकर आत्म-साक्षात्कार के विषय में सर्वोच्च व्यक्तित्व के उपदेशों को सुना। ये सारे उपदेश शाश्वत वैदिक साहित्य (ब्रह्म) से थे। इस तरह, राजा और ऋषियों को परम सत्य (परब्रह्म) के विषय में कोई संदेह नहीं रहा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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