नाव में बैठे-बैठे राजा सत्यव्रत ने महर्षियों के साथ मिलकर आत्म-साक्षात्कार के विषय में सर्वोच्च व्यक्तित्व के उपदेशों को सुना। ये सारे उपदेश शाश्वत वैदिक साहित्य (ब्रह्म) से थे। इस तरह, राजा और ऋषियों को परम सत्य (परब्रह्म) के विषय में कोई संदेह नहीं रहा।