श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 24: भगवान् का मत्स्यावतार  »  श्लोक 55
 
 
श्लोक  8.24.55 
 
 
पुराणसंहितां दिव्यां साङ्ख्ययोगक्रियावतीम् ।
सत्यव्रतस्य राजर्षेरात्मगुह्यमशेषत: ॥ ५५ ॥
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार भगवान ने राजा सत्यव्रत को वह आध्यात्मिक विज्ञान बतलाया जिसे सांख्ययोग कहा जाता है, जिसके द्वारा पदार्थ और आत्मा के अंतर को समझा जा सकता है (दूसरे शब्दों में, भक्तियोग), साथ ही पुराणों (प्राचीन इतिहास) और संहिताओं में पाये जाने वाले उपदेश भी बताये। भगवान ने इन सभी ग्रंथों में अपनी व्याख्या की है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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