श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 24: भगवान् का मत्स्यावतार  »  श्लोक 54
 
 
श्लोक  8.24.54 
 
 
श्रीशुक उवाच
इत्युक्तवन्तं नृपतिं भगवानादिपूरुष: ।
मत्स्यरूपी महाम्भोधौ विहरंस्तत्त्वमब्रवीत् ॥ ५४ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा कि उसी प्रकार जब सत्यव्रत ने मत्स्य रूप धारण करने वाले भगवान की प्रार्थना इस प्रकार की तो अंतर्धान के समय जल में विचरण करते हुए भगवान ने उन्हें परम सत्य का उपदेश दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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