श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 24: भगवान् का मत्स्यावतार  »  श्लोक 52
 
 
श्लोक  8.24.52 
 
 
त्वं सर्वलोकस्य सुहृत् प्रियेश्वरो
ह्यात्मा गुरुर्ज्ञानमभीष्टसिद्धि: ।
तथापि लोको न भवन्तमन्धधी-
र्जानाति सन्तं हृदि बद्धकाम: ॥ ५२ ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभु! आप ही सबके सच्चे शुभचिंतक और सबसे प्यारे मित्र हैं। आप ही सबके नियंत्रक हैं, परमात्मा हैं, सर्वोच्च उपदेशक हैं, परम ज्ञान के दाता हैं और सभी इच्छाओं को पूरा करने वाले हैं। हालाँकि आप हृदय में ही रहते हैं, किन्तु हृदय में बसी वासनाओं के कारण मूर्ख व्यक्ति आपको समझ नहीं पाता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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