श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 24: भगवान् का मत्स्यावतार  »  श्लोक 48
 
 
श्लोक  8.24.48 
 
 
यत्सेवयाग्नेरिव रुद्ररोदनं
पुमान् विजह्यान्मलमात्मनस्तम: ।
भजेत वर्णं निजमेष सोऽव्ययो
भूयात् स ईश: परमो गुरोर्गुरु: ॥ ४८ ॥
 
अनुवाद
 
  जो व्यक्ति भौतिक बंधनों से मुक्त होना चाहता है, उसे भगवान की सेवा में लगना चाहिए और अच्छे-बुरे कर्मों से युक्त अज्ञानता के संस्पर्श को त्याग देना चाहिए। इस प्रकार, मनुष्य अपनी मूल पहचान को फिर से प्राप्त कर लेता है, जैसे सोने या चांदी की एक डली आग में तपने पर अपनी सारी गंदगी त्यागकर शुद्ध हो जाती है। ऐसे अनंत भगवान! आप हमारे गुरु बनें क्योंकि आप सभी अन्य गुरुओं के आदि गुरु हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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