श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 24: भगवान् का मत्स्यावतार  »  श्लोक 46
 
 
श्लोक  8.24.46 
 
 
श्रीराजोवाच
अनाद्यविद्योपहतात्मसंविद-
स्तन्मूलसंसारपरिश्रमातुरा: ।
यद‍ृच्छयोपसृता यमाप्नुयु-
र्विमुक्तिदो न: परमो गुरुर्भवान् ॥ ४६ ॥
 
अनुवाद
 
  राजा ने कहा: भगवान की कृपा से, जो लोग अनंत काल से आत्मज्ञान खो बैठे हैं और इस अज्ञानता के कारण भौतिक, सशर्त जीवन में दुखों से भरे हुए हैं, उन्हें भगवान के भक्तों से मिलने का मौका मिलता है। मैं उस परम भगवान को परम आध्यात्मिक गुरु के रूप में स्वीकार करता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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