श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 24: भगवान् का मत्स्यावतार  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  8.24.45 
 
 
निबध्य नावं तच्छृङ्गे यथोक्तो हरिणा पुरा ।
वरत्रेणाहिना तुष्टस्तुष्टाव मधुसूदनम् ॥ ४५ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान के पहले दिए हुए आदेशों का पालन करते हुए राजा ने वासुकि नाग को रस्सी की तरह बनाया और उस नाव को मछली के सींग में बाँध दिया। संतुष्ट होकर वे प्रभु की स्तुति करने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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