श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 24: भगवान् का मत्स्यावतार  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  8.24.44 
 
 
सोऽनुध्यातस्ततो राज्ञा प्रादुरासीन्महार्णवे ।
एकश‍ृङ्गधरो मत्स्यो हैमो नियुतयोजन: ॥ ४४ ॥
 
अनुवाद
 
  तब, राजा जब लगातार भगवान का ध्यान कर रहे थे, तभी प्रलय सागर में एक बड़ी सुनहरी मछली निकली। उस मछली के एक सींग थे और वह अस्सी लाख मील लम्बी थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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