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स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन
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अध्याय 24: भगवान् का मत्स्यावतार
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श्लोक 42
श्लोक
8.24.42
ध्यायन् भगवदादेशं ददृशे नावमागताम् ।
तामारुरोह विप्रेन्द्रैरादायौषधिवीरुध: ॥ ४२ ॥
अनुवाद
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जैसे ही सत्यव्रत को भगवान के आदेश का स्मरण हुआ, तैसे ही उसे अपनी ओर आती एक नाव दिखाई पड़ी। तत्पश्चात वह वनस्पतियों और लताओं को इकट्ठा किया और वह साधु ब्राह्मणों के साथ उस नाव पर चढ़ गया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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