श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 24: भगवान् का मत्स्यावतार  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  8.24.37 
 
 
अहं त्वामृषिभि: सार्धं सहनावमुदन्वति ।
विकर्षन् विचरिष्यामि यावद् ब्राह्मी निशा प्रभो ॥ ३७ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजन! इस नाव में तुम्हें और समस्त ऋषियों को बिठाकर, प्रलय के जल में मैं तब तक यात्रा करूँगा जब तक कि ब्रह्मा जी की शयन-रात्रि पूरी नहीं हो जाती।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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