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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन
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अध्याय 24: भगवान् का मत्स्यावतार
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श्लोक 36
श्लोक
8.24.36
दोधूयमानां तां नावं समीरेण बलीयसा ।
उपस्थितस्य मे शृङ्गे निबध्नीहि महाहिना ॥ ३६ ॥
अनुवाद
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तब जैसे ही नाव तेज हवा में डगमगाने लगे तुम उसे महान सर्प वासुकि के सहारे मेरे सींग से बाँध देना क्योंकि मैं स्वयं तुम्हारे साथ ही उपस्थित रहूँगा।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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