श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 24: भगवान् का मत्स्यावतार  »  श्लोक 34-35
 
 
श्लोक  8.24.34-35 
 
 
त्वं तावदोषधी: सर्वा बीजान्युच्चावचानि च ।
सप्तर्षिभि: परिवृत: सर्वसत्त्वोपबृंहित: ॥ ३४ ॥
आरुह्य बृहतीं नावं विचरिष्यस्यविक्लव: ।
एकार्णवे निरालोके ऋषीणामेव वर्चसा ॥ ३५ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजन्! उसके पश्चात् तुम सब प्रकार की औषधियाँ एवं बीजों का संग्रह करके उस विशाल नाव में चढ़ाओगे। फिर तुम उस नाव में सप्त ऋषियों और समस्त प्रकार के जीवों से घिरे रहकर चढ़ोगे और बिना किसी खिन्नता के तुम अपने संगियों सहित बाढ़ के समुद्र में सहजतापूर्वक विचरण करोगे। उस समय ऋषियों का तेज ही एकमात्र प्रकाश होगा।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.