न तेऽरविन्दाक्ष पदोपसर्पणं
मृषा भवेत् सर्वसुहृत्प्रियात्मन: ।
यथेतरेषां पृथगात्मनां सता-
मदीदृशो यद् वपुरद्भुतं हि न: ॥ ३० ॥
अनुवाद
हे कमल दल समान नेत्रों वाले प्रभु! देह के भौतिक गुणों की पहचान से युक्त देवताओं की पूजा सभी तरह से निरर्थक है। चूँकि आप हर एक के परम मित्र तथा प्रियतम परमात्मा हैं, इसलिए आपके चरणकमलों की पूजा कभी व्यर्थ नहीं जाती। इसलिए आपने मछली का रूप प्रकट किया है।