श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 24: भगवान् का मत्स्यावतार  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  8.24.30 
 
 
न तेऽरविन्दाक्ष पदोपसर्पणं
मृषा भवेत् सर्वसुहृत्प्रियात्मन: ।
यथेतरेषां पृथगात्मनां सता-
मदीद‍ृशो यद् वपुरद्भ‍ुतं हि न: ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  हे कमल दल समान नेत्रों वाले प्रभु! देह के भौतिक गुणों की पहचान से युक्त देवताओं की पूजा सभी तरह से निरर्थक है। चूँकि आप हर एक के परम मित्र तथा प्रियतम परमात्मा हैं, इसलिए आपके चरणकमलों की पूजा कभी व्यर्थ नहीं जाती। इसलिए आपने मछली का रूप प्रकट किया है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.