श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 24: भगवान् का मत्स्यावतार  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  8.24.28 
 
 
नमस्ते पुरुषश्रेष्ठ स्थित्युत्पत्त्यप्ययेश्वर ।
भक्तानां न: प्रपन्नानां मुख्यो ह्यात्मगतिर्विभो ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  हे नाथ, सृजन, पालन और संहार के स्वामी, भोगियों में श्रेष्ठ भगवान विष्णु! आप हमारे जैसे शरणागत भक्तों के नेता और गंतव्य हैं। इसलिए मैं आपको अपनी विनम्र प्रणाम अर्पित करता हूं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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