श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 24: भगवान् का मत्स्यावतार  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  8.24.27 
 
 
नूनं त्वं भगवान् साक्षाद्धरिर्नारायणोऽव्यय: ।
अनुग्रहाय भूतानां धत्से रूपं जलौकसाम् ॥ २७ ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभु! आप निःसंदेह अविनाशी परमेश्वर नारायण, श्री हरि हैं। जीवों के प्रति अपनी दयालुता प्रदर्शित करने के लिए ही आपने अब एक जलीय प्राणी का रूप धारण किया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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