श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 24: भगवान् का मत्स्यावतार  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  8.24.26 
 
 
नैवंवीर्यो जलचरो द‍ृष्टोऽस्माभि: श्रुतोऽपि वा ।
यो भवान् योजनशतमह्नाभिव्यानशे सर: ॥ २६ ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभु! एक ही दिन में आपने अपना आकार सैकड़ों मील तक बढ़ा लिया और नदी से सागर तक फैल गए। इससे पहले मैंने न तो ऐसा जलचर जानवर देखा था और न ही सुना था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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