श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 24: भगवान् का मत्स्यावतार  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  8.24.25 
 
 
एवं विमोहितस्तेन वदता वल्गुभारतीम् ।
तमाह को भवानस्मान् मत्स्यरूपेण मोहयन् ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  सर्वोच्च भगवान् की मछली स्वरूप से ये मधुर वचन सुनकर मोहित हुए राजा ने पूछा: आप कौन हैं? आप हम सभी को मोहित कर रहे हैं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.