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स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन
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अध्याय 24: भगवान् का मत्स्यावतार
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श्लोक 23
श्लोक
8.24.23
इत्युक्त: सोऽनयन्मत्स्यं तत्र तत्राविदासिनि ।
जलाशयेऽसम्मितं तं समुद्रे प्राक्षिपज्झषम् ॥ २३ ॥
अनुवाद
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इस प्रकार प्रार्थना किए जाने पर राजा सत्यव्रत उस मछली को जल के सबसे बड़े आश्रय पर ले गए। पर जब वह भी अपर्याप्त सिद्ध हुआ तो राजा ने अंत में उस मछली को सागर में डाल दिया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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