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स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन
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अध्याय 24: भगवान् का मत्स्यावतार
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श्लोक 22
श्लोक
8.24.22
नैतन्मे स्वस्तये राजन्नुदकं सलिलौकस: ।
निधेहि रक्षायोगेन ह्रदे मामविदासिनि ॥ २२ ॥
अनुवाद
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तब मछली बोली: हे राजा! मैं एक बड़ी जलचर हूँ, और यह पानी मेरे लिए बिलकुल भी उचित नहीं है। अब आप कृपा करके मुझे बचाने का कोई रास्ता निकालें। अच्छा होगा कि मुझे ऐसी झील के पानी में रख दें जो कभी न घटे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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