श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 24: भगवान् का मत्स्यावतार  »  श्लोक 2-3
 
 
श्लोक  8.24.2-3 
 
 
यदर्थमदधाद् रूपं मात्स्यं लोकजुगुप्सितम् ।
तम:प्रकृति दुर्मर्षं कर्मग्रस्त इवेश्वर: ॥ २ ॥
एतन्नो भगवन् सर्वं यथावद् वक्तुमर्हसि ।
उत्तमश्लोकचरितं सर्वलोकसुखावहम् ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  प्रभु ने जिस प्रकार विभिन्न रूप धारण करने वाले सामान्य जीवों की तरह घोर पीड़ा से भरा मछली का रूप ग्रहण किया, उसके पीछे क्या कारण था? हे प्रभु! इस अवतार का क्या उद्देश्य था? कृपया मुझे बताएं, क्योंकि भगवान् की लीलाओं का श्रवण प्रत्येक व्यक्ति के लिए शुभ है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.