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स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन
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अध्याय 24: भगवान् का मत्स्यावतार
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श्लोक 17
श्लोक
8.24.17
सा तु तत्रैकरात्रेण वर्धमाना कमण्डलौ ।
अलब्ध्वात्मावकाशं वा इदमाह महीपतिम् ॥ १७ ॥
अनुवाद
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किन्तु एक रात में ही मछली इतनी बड़ी हो गई कि उसे उस बर्तन के पानी में अपने शरीर को इधर-उधर घुमाने में दिक्कत होने लगी। तब उसने राजा से इस प्रकार कहा।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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