तमाह सातिकरुणं महाकारुणिकं नृपम् ।
यादोभ्यो ज्ञातिघातिभ्यो दीनां मां दीनवत्सल ।
कथं विसृजसे राजन् भीतामस्मिन् सरिज्जले ॥ १४ ॥
अनुवाद
अत्यंत अनुकंपाशील राजा सत्यव्रत से उस बेचारी छोटी मछली ने करुण स्वर में कहा: हे निर्धनों के रक्षक राजा! आप मुझे नदी के जल में क्यों फेंक रहे हैं जहाँ पर अन्य जलचर हैं और जो मुझे मार सकते हैं? मैं उनसे अत्यधिक भयभीत हूँ।