श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 24: भगवान् का मत्स्यावतार  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  8.24.1 
 
 
श्रीराजोवाच
भगवञ्छ्रोतुमिच्छामि हरेरद्भ‍ुतकर्मण: ।
अवतारकथामाद्यां मायामत्स्यविडम्बनम् ॥ १ ॥
 
अनुवाद
 
  महाराज परीक्षित ने कहा: भगवान हरि सदैव अपने दिव्य स्थान में स्थित रहते हैं; फिर भी वे इस भौतिक संसार में अवतरित होते हैं और विविध रूपों में अपने अस्तित्व का प्रदर्शन करते हैं। उनका प्रथम अवतार एक महान मछली के रूप में हुआ था। हे सर्वशक्तिमान शुकदेव गोस्वामी! मैं आपसे उस मत्स्यावतार की लीलाओं को सुनना चाहता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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