श्रीप्रह्लाद उवाच
नेमं विरिञ्चो लभते प्रसादं
न श्रीर्न शर्व: किमुतापरेऽन्ये ।
यन्नोऽसुराणामसि दुर्गपालो
विश्वाभिवन्द्यैरभिवन्दिताङ्घ्रि: ॥ ६ ॥
अनुवाद
प्रह्लाद महाराज ने कहा : हे भगवान्! आपकी पूजा सारे संसार में होती है; यहाँ तक कि ब्रह्माजी और शिवजी भी आपके चरणकमलों की पूजा करते हैं। इतने महान् होते हुए भी आपने कृपापूर्वक हम असुरों की रक्षा करने का वचन दिया है। मेरा विचार है कि ब्रह्माजी, शिवजी या लक्ष्मीजी को भी कभी ऐसी दया नहीं प्राप्त हुई; तो अन्य देवताओं या सामान्य व्यक्तियों की बात ही क्या है!