श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 23: देवताओं को स्वर्गलोक की पुनर्प्राप्ति  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  8.23.5 
 
 
लब्धप्रसादं निर्मुक्तं पौत्रं वंशधरं बलिम् ।
निशाम्य भक्तिप्रवण: प्रह्लाद इदमब्रवीत् ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  जब प्रह्लाद महाराज ने यह सुना कि उनके पौत्र एवं वंशज बलि महाराज कैसे बंधन से मुक्त हुए और उन्हें भगवान का आशीर्वाद प्राप्त हुआ, तो वे अतिशय हर्ष और भक्तिभाव से बोले।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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