पारं महिम्न उरुविक्रमतो गृणानो
य: पार्थिवानि विममे स रजांसि मर्त्य: ।
किं जायमान उत जात उपैति मर्त्य
इत्याह मन्त्रदृगृषि: पुरुषस्य यस्य ॥ २९ ॥
अनुवाद
मरणशील व्यक्ति सम्पूर्ण पृथ्वी के कणों की गिनती नहीं कर सकता और इसी प्रकार वह त्रिविक्रम अर्थात् भगवान विष्णु की महिमा की गहराई का अनुमान नहीं लगा सकता है। ऐसा कोई भी व्यक्ति चाहे वह पहले ही जन्म ले चुका हो या फिर जन्म लेने वाला हो, यह नहीं कर सकता। यह महर्षि वसिष्ठ द्वारा गाया गया है।