श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 23: देवताओं को स्वर्गलोक की पुनर्प्राप्ति  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  8.23.29 
 
 
पारं महिम्न उरुविक्रमतो गृणानो
य: पार्थिवानि विममे स रजांसि मर्त्य: ।
किं जायमान उत जात उपैति मर्त्य
इत्याह मन्त्रद‍ृगृषि: पुरुषस्य यस्य ॥ २९ ॥
 
अनुवाद
 
  मरणशील व्यक्ति सम्पूर्ण पृथ्वी के कणों की गिनती नहीं कर सकता और इसी प्रकार वह त्रिविक्रम अर्थात् भगवान विष्णु की महिमा की गहराई का अनुमान नहीं लगा सकता है। ऐसा कोई भी व्यक्ति चाहे वह पहले ही जन्म ले चुका हो या फिर जन्म लेने वाला हो, यह नहीं कर सकता। यह महर्षि वसिष्ठ द्वारा गाया गया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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