वेदानां सर्वदेवानां धर्मस्य यशस: श्रिय: ।
मङ्गलानां व्रतानां च कल्पं स्वर्गापवर्गयो: ॥ २२ ॥
उपेन्द्रं कल्पयांचक्रे पतिं सर्वविभूतये ।
तदा सर्वाणि भूतानि भृशं मुमुदिरे नृप ॥ २३ ॥
अनुवाद
हे राजा परीक्षित, इंद्र को पूरा ब्रह्माण्ड का राजा माना जाता था, लेकिन ब्रह्माजी सहित अन्य देवता उपेन्द्र यानी वामनदेव को वेदों, धर्म, यश, ऐश्वर्य, मंगल, व्रत, स्वर्गलोक तक उन्नति और मोक्ष के रक्षक के रूप में चाहते थे। इसलिए उन्होंने उपेन्द्र यानी भगवान वामनदेव को सबका परम स्वामी स्वीकार कर लिया। इस निर्णय से सारे जीव बहुत ख़ुश हो गए।