श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 23: देवताओं को स्वर्गलोक की पुनर्प्राप्ति  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  8.23.2 
 
 
श्रीबलिरुवाच
अहो प्रणामाय कृत: समुद्यम:
प्रपन्नभक्तार्थविधौ समाहित: ।
यल्ल‍ोकपालैस्त्वदनुग्रहोऽमरै-
रलब्धपूर्वोऽपसदेऽसुरेऽर्पित: ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  बलि महाराज ने कहा: आपको नमन करने के प्रयास में भी कितना सुखद प्रभाव है। मैंने तो केवल आपको नमन करने का प्रयास किया था, परन्तु वह प्रयास शुद्ध भक्तों के प्रयासों के समान ही सफल हुआ। आपने मुझ पतित असुर पर जो अकारण कृपा की है वह कृपा तो देवताओं या लोकपालों को भी कभी प्राप्त नहीं हुई।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.