श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 23: देवताओं को स्वर्गलोक की पुनर्प्राप्ति  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  8.23.18 
 
 
श्रीशुक उवाच
प्रतिनन्द्य हरेराज्ञामुशना भगवानिति ।
यज्ञच्छिद्रं समाधत्त बलेर्विप्रर्षिभि: सह ॥ १८ ॥
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार परम शक्तिशाली शुक्राचार्य ने आदरपूर्वक भगवान् की आज्ञा स्वीकार कर ली। वह श्रेष्ठ ब्राह्मणो के साथ मिलकर बलि महाराज द्वारा किये गये यज्ञ की कमियों को पूरा करने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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