श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 23: देवताओं को स्वर्गलोक की पुनर्प्राप्ति  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  8.23.15 
 
 
श्रीशुक्र उवाच
कुतस्तत्कर्मवैषम्यं यस्य कर्मेश्वरो भवान् ।
यज्ञेशो यज्ञपुरुष: सर्वभावेन पूजित: ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  शुक्राचार्य बोले: हे स्वामी! यज्ञ के सभी कर्मकांडों में आप ही भोक्ता और विधानकर्ता हैं और आप ही यज्ञ-पुरुष हैं, अर्थात् सारे यज्ञ आपके लिए ही किए जाते हैं। यदि किसी ने आपको पूर्ण रूप से संतुष्ट कर लिया, तो फिर उसके यज्ञ करने में त्रुटियों या दोषों के होने की संभावना ही कहाँ रहती है?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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